कोरोना का कहर: बुजुर्गों की सामाजिक दूरी


कोरोना जैसी त्रासदी चीन के वुहान से चलकर जैसे दुनिया भर के हर घर में आ पहुंची है। इस अनदेखे-अजाने शत्रु से कोई कैसे निपटे, जिसके लिए कोई दवा रूपी अस्त्र भी हमारे पास नहीं है। वे अमेरिका और यूरोपीय देश, जो अक्सर तीसरी दुनिया के देशों को अपनी अच्छी चिकित्सीय सुविधाओं का हवाला देकर इतराते थे, आज कराह रहे हैं। अमेरिका, इटली और स्पेन में हजारों लोगों का इस तरह मरना एक बड़ी परिघटना है, क्योंकि वहां की आबादी कम है। कोरोना की विपत्ति की मार सबसे अधिक बुजुर्गों पर पड़ी है।इटली ने बुजुर्गों को बिना इलाज के छोड़ दिया और वहां कोरोना के कारण मरने वालों में साठ प्रतिशत बुजुर्ग हैं।ऑर्गनाइजेशन फॉर इकोनॉमिक को-ऑपरेशन ऐंड डेवलपमेंट के मुताबिक, बुजुर्गों की आबादी के मामले में इटली जापान के बाद दूसरे नंबर पर है। वहां की 23 फीसदी आबादी पैंसठ वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की है। स्पेन में हालांकि बुजुर्गों की आबादी का अनुपात इटली से कम है, मगर उसने भी इलाज के मामले में बुजुर्गों के बजाय युवाओं को तवज्जो दी है। कारण यह है कि युवाओं को बचाएंगे, तो वे कुछ काम भी आएंगे।
भारत समेत पूरी दुनिया में यह कहने की होड़-सी मची हुई है कि बुजुर्ग अर्थव्यवस्था पर बोझ होते हैं। अपने यहां भी अनेक महानुभाव ये कहते पाए जाते हैं। यहां तक कि यह अघोषित नियम-सा बन चला है कि पचास के बाद लोगों को किसी भी तरह नौकरियों से हटा दिया जाए। हालांकि जिस इटली ने अपने बुजुर्गों को आपदा के वक्त अकेला छोड़ दिया, वहां अन्य यूरोपीय देशों के मुकाबले पारिवारिक रिश्ते बहुत मजबूत हैं। वहां परिवार के लोग अमेरिका की तरह अकेले नहीं हैं। लेकिन जब जान पर बन आती है, तब सभी सबसे पहले खुद को बचाते हैं।
पिछले साल मैं जिनेवा, स्विट्जरलैंड में अपने बेटे के घर के पास एक वृद्धाश्रम देखने गई थी। वहां बुजुर्गों के रहने, खाने-पीने, मनोरंजन की जो व्यवस्था थी, उसे देखकर लगा था कि काश, हमारे देश में भी ऐसा हो सकता, क्योंकि अब अपने देश में भी बहुत से बुजुर्गों को घर से बाहर निकाल दिया जाता है। वहां बुजुर्गों को इतने अच्छे ढंग से कैसे रख पाते हैं, इस बारे में जब मैंने पूछा था, तो मुझे बताया गया था कि जब ये बुजुर्ग युवा थे, तब किसी न किसी रोजगार में लगे हुए थे, देश की प्रगति में इनका भी योगदान था।
अब जब ये उम्र के चौथेपन में हैं, तब सरकार की जिम्मेदारी है कि इनकी देखभाल करे। यह सुनकर मुझे बहुत अच्छा लगा था। लेकिन कोरोना की त्रासदी के बीच यूरोप में बुजुर्गों की मौत अलग ही कहानी कह रही है। इटली और स्पेन में बड़ी संख्या में जो बुजुर्ग रहते हैं, उन्होंने भी तो अपने-अपने देशों की तरक्की में कुछ न कुछ योगदान दिया होगा। लेकिन विडंबना यह है कि मुसीबत के वक्त उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया गया। अब ब्रिटेन में भी ऐसा ही होने वाला है। लेकिन किसी भी मानवाधिकार संगठन ने इस बारे में शायद ही कोई आवाज उठाई है। एक तरफ विश्व स्वास्थ्य संगठन का कहना है कि बुजुर्गों को कोरोना के संक्रमण का अधिक खतरा है। दूसरी तरफ लांसेट की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि 'सोशल डिस्टेंसिंग' का सबसे अधिक असर बुजुर्गों पर ही पड़ने वाला है। वे ही बाहर जाकर अपने परिचित-मित्रों के साथ समय बिताते थे।
अब वे कहां जाएं? न्यूयॉर्क में बड़ी संख्या में बुजुर्ग रहते हैं। सामान्य स्थिति में वे कम्युनिटी सेंटर्स में जाकर अनेक गतिविधियों में भाग लेते थे। लेकिन अब वे कहां जाएं? वे अगर बीमार पड़े, तो इलाज भी मिलना मुश्किल है। वैसे अमेरिका में सिर्फ 14.5 प्रतिशत आबादी पैंसठ वर्ष से अधिक उम्र के लोगों की है, मगर कोरोना से सर्वाधिक खतरा उन्हें ही है। अपने यहां भी छह प्रतिशत बुजुर्ग अकेले रहते हैं। उनकी तकलीफ भी ऐसी ही है। बुजुर्गों से कैसे निजात पाई जाए, इसकी जुगत शायद दुनिया के हर देश में भिड़ाई गई है। अपने यहां भी वानप्रस्थ की व्यवस्था रही है। यानी बूढ़े होने के बाद जंगल में चले जाइए। अपने खाने-पीने रहने की व्यवस्था खुद कीजिए। और जंगली जानवरों का शिकार बनते हैं, तो बन जाइए।
ऐसी बहुत-सी बातें हमारी लोककथाओं में भी मिलती हैं। और ये सिर्फ हमारे यहां ही नहीं, लगभग सब देशों में हैं। वह कथा तो याद ही होगी, जहां एक बूढ़े को टूटे बर्तनों में खाना दिया जाता था। एक दिन बच्चा जब एक टूटे बर्तन को संभालकर रखता है, तो पिता उससे पूछता है कि वह ऐसा क्यों कर रहा है, तब वह बच्चा कहता है कि जब पिता बूढ़ा हो जाएगा, तो वह उसे इसी बर्तन में खाना देगा। ऐसी कथाएं यही बताती हैं कि उम्र को किसी ने पकड़कर नहीं रखा है।
आज जो किसी के बूढ़े होने पर हंस रहा है, तंज कस रहा है, उसे तमाम सुविधाओं से वंचित कर रहा है, कल उसके साथ भी यही होना है, क्योंकि जो आज जवान हैं, कल उम्र उसके साथ भी वही करेगी, जो आज उसके पिता या दादा के साथ हुआ है। लेकिन अक्सर जब तक हम युवा रहते हैं, हमें कभी लगता ही नहीं कि जीवन में ऐसा भी कोई पड़ाव आएगा, जहां हम कमजोर होंगे, शरीर साथ छोड़ देगा और हमें दूसरों पर निर्भर होना पड़ेगा। इटली या स्पेन में जिन बुजुर्गों ने बड़ी संख्या में अपनी जान गंवाई, उन्होंने भी कब ऐसा सोचा होगा कि अंत समय में उनके साथ कोई नहीं होगा।
न वह परिवार, जिसके लिए अपना जीवन लगा दिया, न वह सरकार, जिसे बनाने-चलाने के लिए हमेशा वोट दिया, न वे डॉक्टर, जिनके लिए जीवन भर चिकित्सा बीमा की राशि दी। अंत समय इतना निर्मम होगा, किसे पता था! हाल ही में कैलिफोर्निया में रहने वाली एक रिश्तेदार महिला ने कहा था कि अगर आपका एक भी सफेद बाल दिख जाए, तो अमेरिका में नौकरी मिलनी मुश्किल है। यह इन दिनों दुनिया भर के लिए सच है।